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Vivek Madhukar

Abstract Fantasy

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Vivek Madhukar

Abstract Fantasy

ऐ मेरे वतन

ऐ मेरे वतन

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विचर रहा था स्वप्न के संसार में

हाथों में हाथ, मनमीत के साथ

एक धमाका कर गया छिन्न-भिन्न

इस सुनहरे ख्वाब को

आँख खुली

देखा


निराशे के कोहरे से ढका सूरज

भयातुर निःशब्द पंछी

सशंकित ह्रदय

कोने में दुबका निश्छल प्यार


परखच्चे उड़ चुके थे

ताजमहल के

असंख्य लोग थे

असंख्य आँखें

दहशत भरी

आतंकवादियों ने की थी

बम-वर्षा


सक्रिय हो गयी थी पुलिस

धर दबोचा था कुछ लोगों को

शामिल थे जो इस निंदनीय कृत्य में


सारे थे अपने

नहीं कोई पराया

भारत का वासी

इसी मिट्टी का जाया


क्या सन्देश दोगे दुनिया को शांति

औ प्रेम का, ऐ मेरे वतन

मिटा रहा तेरा पूत ही निशानी प्रेम की

उजाड़ रहा तेरे ही दिल का चमन।


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