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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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अहमकों की दुनिया

अहमकों की दुनिया

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ज़नाब,

ये अहमकों की दुनिया है

यहाँ अपनी काबिलियत को

यूँ सरेआम न ज़ाया कीजिए।

जो खुश हैं

जुगनुओं की रोशनी में

उन्हें किस्से सूरज के

न बताया कीजिए।


बेवजह न बनिये मोहरा

यूँ अपने ही नसीब का।

ये हाथों की तमाम 

आड़ी तिरछी लकीरों का

होता है बदनसीबी से

रिश्ता बड़ा करीब का।

बातें कीजिए यहाँ

इंसान को पहचान के।


लाख बांटिए ग़म अपने

चाहे जितने इत्मीनान से,

जो पूछेगा अगर कोई

हाल-ए-दिल आपका

तो पूछेगा बड़े एहसान से।

सिर्फ नाम के ये इंसान हैं

लाख बेहतर हैं इनसे

वो दफन मुर्दे कब्रिस्तान के।


जिस रोज़ भी

गुमान हो खुद पे

उसी रोज़ इक बार रुख

शमशान का भी कीजिए।

गूँजती हैं जिनकी आवाज़ें

अक्सर पूरी क़ायनात में

मिल जाते हैं वो भी

एक दिन ख़ाक में।


है ज़िन्दगी जब तक

मिलिए सभी से

बड़ी गर्मजोशी से।

हो कितनी भी आवाज़ 

क्यूँ न बुलंद आपकी ।

साथ निभाती है आखिर में

बस खामोशी आपकी। 


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