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अगर मैं सबसे बेहतर हो गया हूँ

अगर मैं सबसे बेहतर हो गया हूँ

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अगर मैं सबसे बेहतर हो गया हूँ
यक़ीनन फिर मैं पत्थर हो गया हूँ

न ही चीखें न आँसू हैं निकलते
मैं ग़म का इक समुन्दर हो गया हूँ

छुपाऊँ पैर तो मुँह छुप न पाए
किसी मुफ़लिस की चादर हो गया हूँ

वो इक मिसरे के दम पर कह रहा है
लो सुन लो, मैं सुख़नवर हो गया हूँ

सहेजे हूँ हज़ारों ज़ख्म दिल पर
किसी ज़ालिम का बिस्तर हो गया हूँ

मुझे रद्दी मुआफ़िक बेच डालो
ज़रूरत से भी कमतर हो गया हूँ

मैं किस बुनियाद पर रक्खूँ चिराग़ अब
मैं ख़ुद ही फूँस छप्पर हो गया हूँ...!!


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