अध्यात्म ज्ञान।
अध्यात्म ज्ञान।
प्रक्रिया जिससे शुद्ध ज्ञान है होता, अध्यात्म उसी को कहते हैं।
कला यह है जीवन सुंदर बनाने की, विरले ही इसको पाते हैं।।
निश्चय मानो यह एक ऐसा दीपक, जो अंधकार दूर भगाता है।
काम सही उससे न बन पाते, जो इस चिराग से दूर रहते हैं।।
यह मन बड़ा चंचल है, हर पल मचलता रहता है।
दीवार यह ऐसी खड़ी करता , शुभ कर्म न करने देते हैं।।
मन से कोई ना जीत सका, प्रलोभनों में ही उलझा करता है।
बंधन, मोक्ष यही है दिलवाता, जो मन के कहने पर चलते हैं।।
हृदय पवित्रता को जो हैं रखते, अध्यात्म उसी को आता है।
चार शक्तियाँ हृदय में रहतीं, मन,चित्त, बुद्धि और अहंकार कहते हैं।।
विषय भोगों में लिप्त प्राणी, विष का कीड़ा बनता है।
अमृत फलों का मज़ा क्या जाने, मलिनता को ही चुनते हैं।।
श्रवण,मनन, चिंतन,जो वीतराग पुरुष का करता है।
मल-विकार सब दूर हो जाते, जो गुरु, साधना को करते हैं।।
जो भी संगत जैसी करता, वह वैसा ही बन जाता है।
रूहानी-दौलत उसको ही मिलती, यम-नियम जो अपनाते हैं।।
कर्म, उपासना, ज्ञान का साधन, जो भी गुरु का करता है।
ज्ञान-चक्षु "नीरज" उसके हैं खुल जाते, अध्यात्म के भागी बनते हैं।।