अधूरी प्रेम कवितायें
अधूरी प्रेम कवितायें
मेरी अधूरी प्रेम कवितायें,
नाराज़ हैं मुझसे ;
क्योंकि मैंने उन्हें कभी लिखा नहीं।
कभी सफहों को ज़मीन नहीं दी,
कभी ख़्वाबों का आसमाँ नहीं दिया ;
अब वो दिन भर पीछा करती हैं मेरा।
रात होते बिखर जाती हैं कमरे में,
फ़र्श पर, दीवारों पर,
छत पर, बिस्तर पर,
तस्वीरों को ढ़क लेती हैं,
खूंटियों पर टँग लेती हैं,
पैरों में काँटों की तरह चुभती हैं,
लहू रिस उठता है,
इक अट्टहास गूंजता है,
हैरां हूँ मैं,
फ़र्श पर दाग़ क्यों नहीं दिखते,
मेरे जिस्म पर नीले निशान हैं ;
नोचती हैं रात भर कवितायें मुझे,
मांस उधड़ने लगा है
हड्डियां भुरभुराने लगी हैं,
अब बस इंतज़ार है,
कब ये प्यासी कवितायें,
नश्तर बन
पार कर जाएंगी सीना मेरा,
उखाड़ फेकेंगी मेरी आँखें !
ताकि सैलाब की तरह,
बिन बांध
बह सकूँ मैं और
खाली हो जाऊं,
बिल्कुल खाली
आओ कविताओं,
मैं गुनाहगार हूँ,
खत्म कर दो मेरा वजूद... !
