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Preet Kamal

Drama

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Preet Kamal

Drama

वो

वो

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वो नहीं रही,

उसे मिट्टी में दफ़न नहीं किया गया,

उसे आग में जलाया भी नहीं गया,

पिघला कर उसका जिस्म, हड्डियाँ और आत्मा,

घोल बना दिया गया ।


भाग्य की मथनी बनी, समय बना नेती

और फिर मंथन किया गया,

निकला पीड़ाओं का हलाहल ।


ऐसा शिव कहां जो कंठ में धारण करे,

पन्नों को सोखने को दे विष दिया गया ।


उभर आईं विरह-कविताएं..

निकला प्रेम-अमृत से भरा घट

कौन उसका बोझ सहे,

उसे धरा पर , पहाड़ों पर बिखरा दिया गया,

अंकुरित हो उठी जीवन की लताएं..


जो बच गया, वह किसी के काम का न था,

किसी को चाहिए न था,

उसे भाप बना दिया गया ।


वो मिल गई हवाओं में,

बहने लगी घटाओं में,

और कभी उतर आती

निरतंर बहती जल धाराओं में ।


वो अब भी होगी यहीं कहीं,

परंतु वो जिस नाम से

जानी जाती थी,

उस नाम से अब

वो नहीं रही..।।


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