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DR. RICHA SHARMA

Abstract

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DR. RICHA SHARMA

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अधूरा सपना

अधूरा सपना

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मैं सात साल की बच्ची अनाथ

केवल 'सपना' ही दे रहा मेरा साथ

हर रात बदल जाते हैं मेरे हालात

माँ-बापू से सपने में ही करती हूँ मुलाकात।


दिन भर की भूखी-प्यासी, दर-दर भटकती हूँ

फुटपाथ पर लेटते ही बस आँखें बंद कर लेती हूँ

तभी सपनों की विचित्र दुनिया में खो जाती हूँ

जग की सताई आपबीती केवल सपने में ही सुनाती हूँ।


अब कल का ही सुन लीजिये अजीबोगरीब सपना

दिन भर तो कोई नहीं नज़र आता भरी भीड़ में अपना

बस भीतर मन में सिर्फ़ परमात्मा का नाम जपना

इस प्रकार रात्रि तक मारे-मारे फिरते हुए बुरी तरह थकना।


कल बन गई थी मैं काव्य-पाठ प्रतियोगिता का एक हिस्सा

जाइए मत, कृपया आगे सुनिए ये मजे़दार मेरा किस्सा

प्रसिद्ध जन के होते हुए श्रीगणेश भी मुझसे ही करवाया गया

ऐसा आनंद से भरा माहौल देख कर भर गया था मुझमें जोश

क्योंकि 'सपना' उस समय ले चुका था पूरी तरह अपनी आगोश।


वास्तव में फुटपाथ पर मैं तो पड़ी थी बिल्कुल बेहोश

मैंने भी स्वरचित कविताओं की लगाई ऐसी झड़ी

कि वाह-वाह करते हुए कहने लगे, कहाँ से आई ये फुलझड़ी ?

मैं भी टस से मस नहीं हुई और मैदान में रही पूरी तरह अड़ी।


बस अब तो विजयी होकर मुस्कुराती हुई फुटपाथ पर लौटूंगी

कि इतने में फिर से किसी दरिंदे ने मुझे बेरहमी से दुत्कारा

इतना ही नहीं हर रोज़ की तरह गालियाँ देते हुए ललकारा।


हे दुर्ज न! आज की काव्य-पाठ प्रतियोगिता का

परिणाम तो सुन लेने दे

मुझे सपने में ही सही आखिर कहीं तो जीत लेने दे।


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