अधूरा प्रेम
अधूरा प्रेम
मेरा दिल मुझसे कुछ कहने आया है
साँकलें झँझोड़ मन को जगाने आया है
किवाड़ों पर सिर रख देने भर से तो वो नहीं खुलते
पर प्रेम फिर भी उसकी दरारों से बह जाता है
झरोखे बाहर को ही क्यूँ खुला करते हैं हमेशा
ये एहसास फिर अंदर चोट कैसे कर आया है
ताले लगा डाले हैं दिल पर, कूँची थमा दी है किसी को,
फ़लसफ़े की आदी क़लम ये, प्रेम गीत कैसे लिख आयी है
गाँठें बंधी रिश्तों की मन पर, जीने की क़समें खायीं कभी की
साथ देने की उम्मीद ये , दग़ा करने पर कैसे उतर आयी है
टुकड़े टुकड़े हैं सब, इन टुकड़ों में कहीं खोई है उम्मीद
उठा लो कुछ टुकड़े और जोड़ लो, हो जाऊँ मैं तेरा मुरीद
खेल उम्मीदों से शुरू हो, ख़त्म भी होता उम्मीदों पे
उम्मीदों का बोझा लिए सब, घूमते हैं इस जहाँ में
लेन देन व्यापार है ये, उम्मीदों का उम्मीदों से
द्वंद्व अजब है ये, हसरतों का हसरतों से
दिल ने चाहा जिस कली को, खिल उठी वो झूम कर के
हाथ ज्यों ही बढ़ाया, मिट गयी वो धूल बनके
प्रेम तक तो ठीक है पर, चाहतों का संसार ऐसा
पाने की ही हठ करे जो, प्यार ये हम सब का कैसा।
रक़्स मन मैं है जो उठता, झूमने दे मुझको रती तू
मीत जाने क्यूँ मेरा मन, घूमने दे उसको अभी तू
छू के देखूँ, पा के देखूँ, क्यूँ दिल से दिल तक बात भेजूँ
इस इश्क़ से ही मैं ख़ुश हूँ, क्यूँ किसी की ज़ात खोजूँ
मालूम है अधूरी ये दुनिया, और अधूरे हम बंदे
अधूरे होने का नाज़ हमको, फिर क्यूँ पूरे हों जज़्बात सोचूँ
