अबॉर्शन
अबॉर्शन
मेरे आने की आहट सुनकर,
कदम यह कैसा उठाया माँ ।
चेहरा भी तो नहीं देखा मेरा,
दुनिया से ही मुझे मिटाया माँ।
फूल बनकर खिल जाती मैं,
घर-आँगन तेरा महकाती।
नहीं माँगती महँगे खिलौने,
मैं मिट्टी से ही मन बहलाती।
दया भाव की डोर को मैया,
तुझे कैसे तोड़ना आया था।
मेरी सांसें तोड़ने से पहले माँ,
क्या दिल तेरा न घबराया था।
नारी होकर भी मैया मेरी,
यह कैसा अपसन्देश दिया ।
अबॉर्शन करवाकर अपना,
खुद को ही लज्जित किया।।
