अभी नाराज़ बैठे हैं
अभी नाराज़ बैठे हैं
जो कल तक बात करते थे, अभी नाराज़ बैठे है,
गुमाने हुस्न में है वो, हमे नदान कहते है,
नही मालूम है ढल जाएगा, ये हुस्न का मोती,
वक्त की राह में हैं और, फिर भी अनजान बैठे है।
कभी जिसकी सुबह होती, नहीं थी बात होने तक,
नहीं आती थी नींदें भी, मुलाक़ात होने तक।
मुलाकातें हो या बातें, कभी थी जिंदगी जिसकी,
अभी पैग़ाम भी भेजूं तो, इसको नाट्य कहते हैं।
मोहब्बत ही है वो पहलू, हमें इंसां बनाता है,
बेबसी को समझना भी, हमें ये ही सिखाता है।
अगर ऐहसान करते हो, कि तुमको प्यार है हमसे,
समझ लो कुछ नहीं मालूम, कि किसको प्यार कहते हैं।
कभी न प्यार था तुमको, जिसे हम प्यार समझे थे,
तुम्हारा प्यार ही तो था, जिसे हथियार समझे थे।
हमें परवाह न थी ज़िन्दगी में, जीत हार की,
अदावत (बेरुखी) आपकी ये जो, किये बर्बाद बैठे हैं।
