STORYMIRROR

Kiran Bala

Abstract

4  

Kiran Bala

Abstract

अब कहाँ रही वो होली

अब कहाँ रही वो होली

1 min
242

जब पखवाड़ा पहले से ही,

गुजिया और मठरी की

खुशबू, हर घर को महका जाती थी


फागुन के गीतों को सब

सखियाँ मिलकर के गातीं थी

वो बच्चों की अठखेली,

सबके मन को भा जाती थी


कहाँ खो गई वो हँसी-ठिठोली ?

अब कहाँ रही वो होली !

अब की होली में वो,

पहली सी बात कहाँ ?

न रंगों में फूलों की खुशबू,

रिश्तों की मिठास कहाँ ?


राधा -कृष्ण सा वो प्रेम कहाँ ?

वो रास कहाँ वो राग कहाँ !

न जाने कहाँ खो गई वो होली !

अब कहाँ रही वो होली?


निकलती थी बेफिक्री से

जब नौजवानों की टोलियाँ

ढ़ोल नगाडों के संग

वो गीतों की बोलियाँ


दिखती हैं अब सड़कों पर

मवालियों की ही टोलियाँ

घरों में बंद होकर अब रह गई हैंं गोरियाँ


हुड़दंग हो गई है अब होली

अब कहाँ रही वो होली !


प्रेम-प्यार की जो तस्वीर थी होली

रूठों को मनाने की तरकीब थी होली

झगड़े का अब सबब बन गई है

चीर-हरण का चलन बन गई है


अब तो बस डराने लगी है होली

अब कहाँ रही वो होली !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract