अब डॉलर घर भिजवाना है
अब डॉलर घर भिजवाना है
अब तो परदेस आए हुए बीत गए कई वर्ष:
अब तो बहुत ही कम बातों पर है होता हर्ष!
अब नहीं बजती फोन की घंटियां पहले जैसी:
अब नहीं रोती मां कि बिटिया वहां तू है कैसी?
मौन से हो गए अधर अब मौन हुई है ये वाणी भी :
अपने देश की याद में आंखो से बहे जैसे आंसू पानी भी!
अपनों से किए जो सारे वादे थे वह अब निभाने होंगे:
रुपयों की शक्ल पुरानी हो गई अब डॉलर घर भिजवाने होंगे!
परदेस में कहां अपने देश की मिट्टी की सौंधी खुशबू और अपनापन ?
यहां तो बस एक परायापन सा है, यहां बड़ा कठिन है प्रतिदिन जीवन !