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Suchismita Behera

Abstract

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Suchismita Behera

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अब और कल

अब और कल

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सुबह की किरण अब एक जैसी लगती है

पर उम्मीद की किरण का इन्तजार रहेगा

इन सब पाबंदियों को मिटाकर

वह फिर से पहले जैसा खिलखिलाएगा ।


फिर से आएगी बहार

जो बड़े दिनों से थम सी गई है

व्यस्तता से स्थिरता का ये सफ़र

बड़ी बैचेनी सी बन गई है ।।


भरा हुई आसमां सुना तो जरूर लगता है

गाड़ियों की वह आवाज़ कभी कभी याद भी आती है

डगमगाने लगी है ये पूरी कायनात

न जाने अब और कितने नजारे देखना बाकी है ।।


संध्या की रोशनी उज्जवल है इसमें कोई शक नहीं

अब रात की अंधेरे से भी कोई ग़म नहीं

कल फिर मिलेंगे ऐसा हमने सोचा है

कल क्या होगा उसको सब पता है ।।


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