आवारा ख़्याल
आवारा ख़्याल
आवारा ख़्याल
इठलाता बल खाता सा
प्रेम के आग्रह से
परिपूर्ण दरिया सा
मेरे मन की प्यासी
धरती पर जो उतरा
अभिसिन्चित कर गया
मेरे मन की बगिया को
झूम उठे दिल के उद्गार
और कहने लगे
हमें उनसे हैं प्यार
घटाओं सा बरसने को बेताब
अब तो आ जाओ मेरे सरताज।

