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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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आवाहन

आवाहन

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आवाहन करता नित तुम्हारा, अब तो नाथ तुम पधारो।

 उधारन करना काम तुम्हारा, इस अधम को तुम नाथ उधारो।।


 पतित पावन है नाम तुम्हारा, कैसे मैं तुमको पुकारुँ।

 भव-सागर में गोते खाता ,इस पापी को नाथ उबारो।।


 पापी- कामी भी तर जाते, जो करते हैं चिंतन तुम्हारा।

 विषयों के जंजाल में जकड़ा, हो सके तो हमको भी तारो।।


 ना मुझ में है कोई भक्ति, क्षींण हो रही सारी शक्ति। 

बिगड़ती जाती तकदीर हमारी, अब इसको नाथ तुम्हीं सँबारो।।


 मलिन भरा हृदय हमारा, ले न सकता नाम तुम्हारा।

" नीरज" तो ठहरा एक भिखारी, एक बार मुझ पर भी निहारो।।


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