आतंक का सफाया
आतंक का सफाया
प्रतिशोध
की
भावना पनप रही ज़ोर से !
सर कलम
विध्वंस
करना
चल रहा सब छोर पे !!
अशांत
जन मानस हुआ
लोग भय से
कांपते हैं !
थरथरा कर
नारी बच्चे घर -बार
छोड़ के भागते हैं !!
नाश और विनाश का
तांडव
रचा ही जा रहा !
पर नहीं
थमता यहाँ
नाश बादल छा रहा !!
हम नहीं
कुछ कर सकेंगे !
उपदेशों
के मंत्र
क्या वे सुन सकेंगे ??
उदंडियों
को
उदंडता से
है कुचलना !
राष्ट्र सबको आज मिलकर साथ चलना !!
आ गया
वो क्षण अभी
ललकारने का !
बनके
विष -सर्प
फुफकारने का !!
युद्ध से
कल्याण का
है द्वार खुलता !
धर्म, शांति
प्यार
का पैगाम मिलता !!