" आत्मविश्वास "
" आत्मविश्वास "
ज़िन्दगी के नकारात्मक पहलू हार मानने लगे हैं
मेरे जबरे पन से डर कर अपनी आँख चुराने लगे हैं ,
हर छोटी - छोटी बात परये अकड़ने लगे थे
अब मेरी अकड़ देख कर खुद में सिकुड़ने लगे हैं ,
ज़रा सा ढील दी थीतो सर पर चढ़ने लगे थे
जैसे ही नकेल कसी तो सरपट उतरने लगे हैं ,
चुप रहने से ये मेरे खुद को खुदा समझ बैठे थे
जब मुँह खुला तो अपनी औकात में रहने लगे हैं ,
कैसे नज़र अंदाज़ कर सकती हूँ बात बात पर हर बात पर
नज़र जैसे ही तरेरी तो नज़र झुका कर खड़े होने लगे हैं ,
अंधेरों से भी ज़रा ज़्यादा काले और गहरे होने लगे थे
आशा की एक किरण से देखो कैसे चौंधियांने लगे हैं ,
हद का गुरूर था इनको अपने आप पर
इसी सूरूर में ये अपना झूठा वजूद खोने लगे हैं ,
हावी हो नही सकते ये किसी भी कीमत पर
खुल कर खुली हवा में हम सांस लेने लगे हैं ,
वो दूर खड़े आँखे फाड़े छुप - छुप कर देखते हैं
कैसे हम ज़िंदगी को अब जी भर कर जीने लगे हैं ।