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Mamta Singh Devaa

Inspirational

4  

Mamta Singh Devaa

Inspirational

" आत्मविश्वास "

" आत्मविश्वास "

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ज़िन्दगी के नकारात्मक पहलू हार मानने लगे हैं

मेरे जबरे पन से डर कर अपनी आँख चुराने लगे हैं ,

हर छोटी - छोटी बात परये अकड़ने लगे थे

अब मेरी अकड़ देख कर खुद में सिकुड़ने लगे हैं ,

ज़रा सा ढील दी थीतो सर पर चढ़ने लगे थे

जैसे ही नकेल कसी तो सरपट उतरने लगे हैं ,

चुप रहने से ये मेरे खुद को खुदा समझ बैठे थे

जब मुँह खुला तो अपनी औकात में रहने लगे हैं ,

कैसे नज़र अंदाज़ कर सकती हूँ बात बात पर हर बात पर

नज़र जैसे ही तरेरी तो नज़र झुका कर खड़े होने लगे हैं ,

अंधेरों से भी ज़रा ज़्यादा काले और गहरे होने लगे थे

आशा की एक किरण से देखो कैसे चौंधियांने लगे हैं ,

हद का गुरूर था इनको अपने आप पर

इसी सूरूर में ये अपना झूठा वजूद खोने लगे हैं ,

हावी हो नही सकते ये किसी भी कीमत पर

खुल कर खुली हवा में हम सांस लेने लगे हैं ,

वो दूर खड़े आँखे फाड़े छुप - छुप कर देखते हैं

कैसे हम ज़िंदगी को अब जी भर कर जीने लगे हैं ।


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