आत्ममंथन
आत्ममंथन
अपना दाम खोटा तो,
परखैया क्या करें,
अर्थ गलत लगा बैठे,
संविधान क्या करें।
हमने ही बदल दिए,
नियम और कायदे,
भुला दिए हमने,
स्वतंत्रता के वायदे,
कर्णधार बदल गए,
अब आवाम क्या करें,
अपना दाम खोटा तो,
परखैया क्या करें।।
कहां गया राम का,
आदर्श त्याग शील का,
कहां गया उपदेश,
कृष्ण कर्मवीर का,
घर घर के रावण का,
अंत आज को करें,
अपना दाम खोटा तो,
परखैया क्या करें।।
लगती है ठंड इन्हें,
मध्यान्ह काल में,
लाखों की संख्या में,
आज फटे हाल में,
ऐसे दीन दुखियों की,
खोज खबर को करें,
अपना दाम खोटा तो,
परखैया क्या करें।।
आओ चलें अपने,
कर्तव्य को निभाए,
भारत के हर घर में,
दीप हम जलाएं,
बापू के सपनों को,
साकार अब हम करें,
अपना दाम खोटा तो,
परखैया क्या करें।।
