आषाढ़ में सखी
आषाढ़ में सखी
आसाढ़ में सखी .
मनभावन है मौसम
बादलों के मखमली है रंग
बरसाते रिमझिम फुआरें
नयन हो रहे अभिसिंचित
अमृत रस बरसातें बदरा
गर्जन करते दामिनी संग
शीतल होती हिय की प्यास
मंद मंद मुस्काती धरती
खामोशी का आचँल ओढ़े
सहेजती ,जल की बूंद -बूंद
देती हमको संदेश !
जल की शक्ति पहचानो
यही है जीवन ........।
इस की बर्बादी को रोक
बचानें का उपाय करें
जल के संग्रहण कर
अमूल्य जल संचित करें
वर्ना होगे प्यासे कंठ
ना रहेगा जीवन
वैशाख में होगा तपिश से हाहाकार ....
आसाढ़ सूखा...
ना पड़ेगी सावन मे रिमझिम फुआर
ना कोई सूखे पेड़
उपवन चाह रखते हो
खेतों में अंकुर फूट जायें
हो खेती हरीभरी
किसान हो खुशहाल
अपनी गलती मानों
ना काटों वन संपदा
प्रर्यावरण के बचाव करो
जानो बादल ,से पेड़
पेड़ से बादल
दोनो से है धरती का गहरा रिश्ता !
समय पर होगी जल की
वर्षा समय से बदलेगा मौसम
धरती रहेगी सदा खुशहाल ..।