STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

आषाढ़ के बादल

आषाढ़ के बादल

1 min
478


मन मयूर सा नाच उठता है

जब काले बादल छा जाते,

गरज चमक के साथ रह रहकर

जब बरसात होती है तब

किसानों के चेहरे पर

मुस्कान छा जाती है,

खेती को जैसे अचानक से

संजीवनी सी मिल जाती है।

चारों ओर पानी पानी दिखता है

फसलों, पेड़ पौधों पर

प्रकृति का जब खूबसूरत

धानी रंग चढ़ता है,

मन को बड़ा सूकून देता है।

पानी में उछलते कूदते बच्चे

बागों,जंगलों में पंख फैलाए

नृत्य करते मोरों के झुंड

मन को मोह ही लेता है।

धरती की बुझती प्यास

खोता गर्मी का अहसास

क्या क्या सपने दिखाते हैं

मन में नया उत्साह जगाते हैं।

आषाढ़ के बादल जब गगन में छाते हैं

मन को खूब गुदगुदाते हैं,

नये नये सपनों को पंख दे जाते हैं

झूमकर बरसते जब आषाढ़ के बादल

धरती को नया श्रृंगार दे जाते हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract