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आर्तनाद

आर्तनाद

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हाथ बढ़ा के मुझे उबार लो,

संकट की लहरों से मुझे उतार लो,

घिरा हूँ आज तिमिर में विषम के,

किसी दिशा से पुकार लो माँ,

हाथ बढ़ा के मुझे उबार लो.

तुमने कहा था की सत्य की है सर्वस्व स्तुति,

और असत्य की नहीं श्रुति.

आज सत्य का कथन में,

जन-जन के विलोपन है,

झूठ की श्रुति, स्तुति, आकलन है.

तुम्हारी सीख के अमल का फल है,

आज पंक मध्य तुम्हारा कमल है.

घिरा हूँ आज तिमिर में विषम के,

किसी दिशा से पुकार लो माँ,

हाथ बढ़ा के मुझे उबार लो.

तुमसे सीखा था वह महान है, सर्वशक्तिमान है,

सर्व संचालक और निराकार है,

बस किसी का भगवन, किसी का गॉड, वाहेगुरु तो किसी का परवरदिगार है.

आज हर कोई अपने धर्म का पक्षधर है, और हर मस्तिष्क में कुंडलित यह विषधर है.

तुमसे सीख कर राह मैने बनाई,

अब यह कैसी आंधी घिर आई.

घिरा हूँ आज तिमिर में विषम के,

किसी दिशा से पुकार लो माँ,

हाथ बढ़ा के मुझे उबार लो.

तुमने बताया था कुछ भी नहीं असंभव औ’ मुश्किल,

यदि इरादे हों पूर्णतयः नेक.

सभी कार्य होते हैं तब सिद्ध,

विषमताएं हों चाहे अनेकानेक.

नहीं मिला पर एक भी ऐसा जन,

इरादा जिसका नेक औ’ नेक हो मन.

तेरी करुना को अपनी नियत बनाया,

स्वयं को विरोधों के रण में पाया.

घिरा हूँ आज तिमिर में विषम के,

किसी दिशा से पुकार लो माँ,

हाथ बढ़ा के मुझे उबार लो.


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