आरज़ू
आरज़ू
"आरज़ू मेरे आंगन को
इक फूल की थी,
मुहब्बत में गुलशन तलाशना चाहा
मैंने भूल कि थी!
तेरी जुल्फों का जाल झूठा था
नजरें कमाल हर्फ़ झूठा था
जो सजाया था हक से सपनों को
वो घड़ा मेरे ही सर फूटा था
होश में होकर भी मदहोशी कुबूल की थी
मुहब्बत में गुलशन तलाशना चाहा
मैंने भूल कि थी!"
मेरे गुलाब छिन गए,
सारे ख्वाब छिन गए,
जाम शरबती थे हाथों में तब शराब बन गए
लम्हें सभी कशमकश बन गए
रातों के साथी तब कश बन गए
क्यों इस सितमगरी में सांसे मशगूल की थी
मुहब्बत में गुलशन तलाशना चाहा
मैंने भूल कि थी!

