"आराधना तुम हो मेरी"
"आराधना तुम हो मेरी"


आराधना तुम हो मेरी
मेरी साधना भी तुम ही हो...
दिया और बाती भी तुम
प्रकाश भी तो तुम ही हो...
हां इस संपूर्ण श्रृष्टि का
आधार भी तो तुम ही हो...
प्रत्येक क्षण में हो विद्यमान तुम
प्रत्येक काल में भी तुम ही हो...
आराधना तुम हो मेरी
मेरी साधना भी तुम ही हो...
इस धरा पर भी तुम ही हो
और शून्य में भी तुम ही हो...
प्रत्येक रंग में भी तुम ही हो
प्रत्येक रूप में भी तुम ही हो...
प्रत्येक कर्म फल के प्रभु
दाता भी तो तुम ही हो...
आराधना तुम हो मेरी
मेरी साधना भी तुम ही हो...
मेरे अन
ंत विचारों की
विचारशीलता भी तुम ही हो...
लेखन का मेरे आधार तुम
मेरी कल्पना भी तुम ही हो...
भाव हो मेरे ह्रदय का तुम
मेरी कविता भी तो तुम ही हो...
आराधना तुम हो मेरी
मेरी साधना भी तुम ही तो...
अश्रु हो मेरी आंखों का तुम
मुस्कान भी तो तुम ही हो...
जो खो दिया वो तुम ही हो
जो पा लिया वो तुम ही हो...
विश्वास हो तुम ही मेरा
उम्मीद भी तो तुम्ही ही हो...
इस श्रृष्टि का आरंभ तुम
और अंत भी तो तुम ही हो...
आराधना तुम हो मेरी
मेरी साधना भी तुम ही हो...
कविता गौतम...✍️
23-4-22