Amit Kumar

Inspirational

4.4  

Amit Kumar

Inspirational

आपसी सद्भाव

आपसी सद्भाव

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बेअसर हो रहे हैं

अब सारे असर

मैं नहीं जानता

क्यों बदगुमां है बशर

सुख रहे है नदियां नालें


मर रहे है शज़र

मैं नही जानता क्यों

ख़ामोश है बशर

यह अंधेरी उदास रातें

कल तक बात करती थी मुझसे

क्या हुआ है ए उजालों तुम्हें


क्यों सिसक रहे हो तुम

तुम्हें किसका है डर

जो निडर थे जंगल में

वो भी शहर की और

आने को आमादा है


कुछ जान नही पड़ता

किस तरफ है रास्ता 

और किस तरफ है घर

बस्तियां उजड़ रही है

हस्तियां उजड़ रही है

लेकिन किसकी बस्ती


उजड़ रही है

किसकी हस्ती उजड़ रही है

कौन बावला हो रहा है

किसकी जात बदल रही है

कुछ लोग कह रहे है


क़यामत के आसार है

कुछ लोग कह रहे है

खुदाया करम है

कुछ बुत बने घरों में क़ैद है

कुछ मज़दूर बनकर

इस महामारी में बेबस है


कौन सी सरकार है

जो इनके बारे में सोचेगी

कौन सी सरकार है

जो इनके लिए कुछ करेगी

पक्ष की सरकार या

फिर विपक्ष की सरकार


बीजेपी सरकार या फिर

कांग्रेस सरकार

या आप की सरकार

या फिर कोई निर्दलीय सरकार

कौन लेगा आख़िर

इस सब की जिम्मेदारी


सब अपनी-अपनी गा बजा रहे है

गाड़ियां भी चल रही है

ऑफिस भी खुल रहै है

राशन भी बराबर मिल रहा है

और भाषण भी बराबर


दुकानें भी खुली है

फल सब्ज़िया मुर्गा मछली

बकरा आदि सब मिल रहा है

फिर भी लोग भूखे है

भूख से मर रहे है

या एक दूसरे के साथ के अभाव में

घुट-घुट कर मर रहे हैं


सब सहमे हुए है

डरे हुए है बेबस है

किस से कोरोना से

जो एक वायरस है

या फिर कोरोना की मानसिकता से

जो सरकार ने उन पर इतनी थोंप दी है


अब उन्हें लग रहा है

घर से बाहर आते ही

उनका अंत निकट ही समझो

आखिर आप भी तो कुछ समझो

या समझने का नाटक ही कर लो

वैसे भी नाटक ही तो चल रहा है

बस कलाकार नही चल रहे


इंसान नहीं चल रहे

बाकी सब चल रहा है

देश चल रहा है

सरकार चल रहा है

अब तो शराब भी चल रही है

बस साथ में सबकी हालत

भी ख़राब ही चल रही है


मैं शर्मिंदा हुँ अपने आप से

आपके लिए कुछ नही कर सकता

अपने लिए कुछ नही कर पा रहा हुँ

आपके लिए सोच सकता हूँ 

आपके लिए बात कर सकता हूँ

आपके लिए विचार कर सकता हूँ

आपके लिए लिख सकता हूँ


यह सब मेरा धर्म है

एक दोस्त के रूप में

एक इंसान के रूप में

क्या सचमुच हम अपना

इंसान होने का सही धर्म निभा रहे है

सब जानते हैं आना खाली हाथ है


जाना खाली हाथ

फिर भी चादर बढ़ रही है

चाहे छोटी पड़ जाए खाट

कहाँ लेकर जाओगे यह सब

सब यहीं धरा रह जायेगा

जो असल है वो साथ जायेगा

उसको कर्म कहते हैं


यह मैं नहीं कहता हमारे वेद पुराण कहते है

आओ हम सब अपना धर्म निभाये

एक दूसरे को सहयोग करें

एक दूसरे का हौसला बढाये

कोरोना क्या चीज़ है

ऐसे लाखों करोड़ों वायरस की दहशत को

आपसी सद्भाव से मिटाये।


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