आफत
आफत
मत पूछ कि बेख्याली में ,क्या गुल खिला बैठे,
आतिशे-इश्क से वक्ते-पीरी में हाथ जला बैठे,
ना चैन आया दिल को, ना ज़हन में है सकूं,
ज़ख्म पुराने कुरेद के, हम खुद को रुला बैठे,
तहजीब की ज़द में, ज़नूने-इश्क है नामुमकिन,
ज़माने भर के नखरे उनके, अपने सर उठा बैठे,
संजीदा उल्फत में, हल्की बातों का है तौर नहीं,
आँखें जब ना लड़ी तो यार, हम जुबां लड़ा बैठे,
बचपन की जिद तो मेहमान थी, चंद लम्हों की,
अब खफ़ा होकर वो है उधर, हम इधर आ बैठे,
अदावत के चलते था, दीदारे-यार भी ना गवारा,
ख्वाबों की रंजिश में ही, रातों की नींद उड़ा बैठे,
‘दक्ष’ जवानी तो काटी है तुमने, सलीके से ही,
बुढ़ापे में फिर क्यों, आफत अपने सर बुला बैठे।
