आओ तुम्हे थोड़ा पागल कर दें ,
नए - नए एहसासों से भर दें ,
जो नहीं किया था अब तक तुमने ,
उन सब बातों को पूरा कर दें |
बचपन बीत गया सपनों से ,
जवानी बीती नई मुश्किलों से ,
अब ढलती उम्र में कदम बहकाया ,
सच कहूँ सोच पसीना आया |
एहसास स्त्री का कैसा होता ?
हमसे मिल कर तुमने सोचा ,
अब जब कदम लगे लड़खड़ाने ,
तो बनने लगे कितने सयाने ?
पागल पन का दौर निराला ,
बिना पिये मन हो मतवाला ,
पागल बनने से जो है डरता ,
उम्र भर वो यूँ ही मरता |
पागल होना कोई अपराध नहीं है ,
पर मर्यादा के साथ ही सब सही है ,
आज तुम भी थोड़ा जश्न मना लो ,
पागल होने में अपना साथ निभा दो ||