आओ रचे इक जहां
आओ रचे इक जहां

1 min

441
चलो,
इक जहां रचे।
बच्चे, अपने ही तो हैं,
जहाँ बोझ न लगे।
शिक्षा रहे निर्मल,
जहाँ व्यापार न बने।
शिक्षितजन बने इन्सान भी,
जहाँ वे संवेदनहीन न रहें।
चलो न,
इक ऐसा ही जहां रचे।
क्योंकि आहत हूँ देखकर,
असंवेन्दनशील चिकित्सक,
व्यापारी शिक्षक,
रिश्वतखोर रक्षक
दिशाहीन पीढ़ी,
शन्न मानवता।।।
तो चलो,
रच ही ले इक जहां !
प्रेम फले,
इंसानियत फूले जहाँ।।