आओ जान थोड़ा तुम्हारे भी मतलब की बात करें
आओ जान थोड़ा तुम्हारे भी मतलब की बात करें
आओ जान थोड़ा तुम्हारे भी मतलब की बात करें
तुम कहो तो दिन कहें तुम कहो तो रात कहें
इतना मीठा लहज़ा उफ़्फ़ तुम्हारा...
की इंसान को जहर, जहर न लगे
परिंदे को शहर, शहर न लगे
आओ जान थोड़ा तुम्हारे भी मतलब की बात करें
उलझे आसमान पर मैंने चाँद बसाया था
याने अमीरों के गुलशन में गुलाब लगाया था।
काटों की खेती मैं ज़रा सीख नहीं पाया
ओर कैक्टस से दिल लगाया था
अब उजड़ कर कश्ती मन व्यर्थ हो चला।
देखों समुन्द्र अब उफान में समर्थ हो चला ।
ख़्वाब, इश्क़, दुआ, फ़रेब, जियात्ति, मतलब मिलेगा
आइये इस महफ़िल में तुम्हें सब मिलेगा
कोई आशिक वो किसी सूरज तले जो डूबा था...
अब देखें तो वो भी यहाँ डूबा मिलेगा...
शर्म, हया, दिल्लगी, बगैरत...
यहाँ शरीफों का आशियां भरा मिलेगा।
मैंने देखा है कुछ लोगों को प्रेम में दिखावा करते,
और देखा है सत्य की पगडंडियों की ओर इशारों में छिपी
असत्य फ़रेब भावनाओं को जताया करते।
दवाई भी काम नहीं आ रही है
दर्द भी बहुत हो रहा है
ये क्या हुआ है मुझें
गर्मी में सर्द भी हो रहा हैl
प्रेम की गगरी में ज़हर कितनी आसानी से देते हैं लोग...
जिंदा जिश्म अब मृत भी हो रहा है
तोड़ने से बंधन छुटे गर तुम प्रिये मुझें क्यूँ छलते हो...
छोड़ भी दो अब स्पष्ट बोलकर
दिखावा मुझसे क्यूँ करते हो...
कारण तुम्हारे "कंचन जीवन" व्यर्थ हो रहा है...
और सजा के रूप में शरीर अब अर्थ (धरती) भी हो रहा है।
दवाई भी काम नहीं आ रही है
दर्द भी बहुत हो रहा है।