आओ आज धन्यवाद करें
आओ आज धन्यवाद करें
प्रिय डायरी
दिन बीत गए सात
आज है आठ।
चलो, धन्यवाद करें आज-
उन सब का
उन सारी बातों का
उन सारे पलों का-
जो आज हमारे होने का कारण हैं।
धन्यवाद करें उस
दूध वाले का-
जो मुंह अंधेरे दरवाज़े पर
पैकेट छोड़ जाता है
कि हम सुबह की चाय पी सकें।
धन्यवाद करें
महरी का
जिसके न आने से
हम अपना घर आंगन बुहार रहे है
लीपने की बात हो तो
लीप भी रहे हैं
(गोबर से हाथ सने जैसे
युग बीत गए हैं)
आभार मानें
धोबी का कि
अब हम कपड़े धोते-तहाते ही नहीं,
इस्त्री भी कर रहे हैं।
आभार उस
किराने की दुकान वाले का
कि अब भी
रोज़ हमारा चूल्हा जलता है।
आभार मानें
उन संचार साधनों का जिनके
बंद होने से
हम थम गए हैं।
रोज़ की वजह-बेवजह
भाग दौड़ से
कुछ मुक्त हो गए हैं।
जो 'नहीं-नहीं' करते थे उनके
हाथ भी अब
रिमोट पर चिपक गए हैं।
धन्यवाद उस मोबाइल का भी
कि हम
बोरियत से बच गए हैं।
आभार मानें-
हवा का कि
हम अब भी सांस ले रहे हैं
उस पानी का भी कि
हम प्यासे सो नहीं रहे हैं।
उस छत का-
जिसकी छाँव में हम सुरक्षित हैं।
मंदिरों का कि
जिनके बंद द्वार
हमें अपने अंदर के ईश्वर से
परिचित करा गए हैं।
धन्यवाद करें
ईश्वर का कि जिसने हमें
इन पलों में
जीवन का अर्थ
ढूंढ़ने-समझने का सामर्थ्य दिया,
नियम-संयम पालने का
अर्थ दिया,
वंचितों के प्रति संवेदनशील होने की,
आश्रितों के प्रति सद्भावना रखने की,
प्रेरणा दी।
आओ धन्यवाद करें
ईश्वर का कि आज हमें
‘मैं’ से “हम” होने का एक अवसर मिला!!