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Harshita Dawar

Abstract

5.0  

Harshita Dawar

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आंखो में छिपी तस्वीरें

आंखो में छिपी तस्वीरें

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105



तेरी आंखो में छपी मेरी तस्वीरें

मेरी आंखो में तेरी तस्वीरें बातें

कर रही थीं,

हम ख़ामोश थे, 

आंखों से बातें चल रही थी।

दिल ख़ामोश लहरों की तरह शांत

थे ,

लगा सैलाब से पहले हम ख़ुद को,

बेहद शांत कर लेते हैं

बस ऐसे ही अंदाज़बयान होते नज़र रहे थे।


मदहोश फिजाओं में जैसे जुलूस निकलते

नज़र आ रहे थे,

थरथराती कांपतें होंठों से बरसता,  

बे मौसम का सावन आंखों से ओझल होते एहसास,करवा रहे थे,

तुम जो थे वो अब नहीं थे।

हम साथ थे ,पर पास नहीं थे,

हाथ भी अब हाथों में नहीं थे,

तेरे नाम से मेरे नाम में भी दूरी हो रही थी।

किस कदर नजरों में गिरते देख रही थी।

तेरे मैसेज अब मेरे तक नहीं पहुंचते,

तेरी बातें दिल को नहीं छूती अब, 

तो अब लोगों की भीड़ में एक और 

शामिल हुआ अजनबी बन गया मेरे लिए।

तू कौन है ये सवाल बन गया मेरे लिए।

मेरे लिए।

तू कभी था, मेरा दुबारा नहीं पूछना ,

महज़ इतिफाक़ नहीं।

बुरा ख़्याल बन कर भुला दुंगी तुझको,

तू कौन है।


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