आँखें
आँखें
पंच इन्द्रियों में मुख्य है
काया को शोभित करती।
दृश्य विश्व को निहारती
अच्छा बुरा सब समेट लेती।
प्रेम इस तरह दर्शाती
शब्दों को लुप्त कर देती।
देह के अंतस में देखती
ये आंखें सृष्टि घूम आती।
आंखें धोखेबाज भी होती
तिरछी नजरों से देखते ही
तुनक कर वे आंखें दूसरी
क्रोध से बिफरने लगती।
अंतर्मन के भावों को उद्दीप्त
कर मुख मंडल पर झलकती।
गरीब की कुटिया से बंगले तक
सहज झांक कर आ जाती।
ये आंखें ही प्यारा और न्याराबना देती।