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राही अंजाना

Abstract

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राही अंजाना

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आँचल वट वृक्ष का

आँचल वट वृक्ष का

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ज़मी पर जब भी गिरूँ आसमां से उठाने आता है,

सोये हुए ख्वाबों को वो मेरे रोज़ जगाने आता है,


दिखता किसी को नहीं ढूंढते सब हैं ठिकाने उसके,

एक वो है जो इस राही को हर रस्ता बताने आता है, 


किसी वट वृक्ष की छाया सा माता-पिता का साया,

जब ज़िन्दगी में लगे धुप तो आँचल उढ़ाने आता है,


वहीं खड़ा रह जाता हूँ जहाँ नज़र आता नहीं मुझे, 

हाथ फिर उसका अँधेरे से रौशनी दिखाने आता है।


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