आमना- सामना
आमना- सामना
जब कलम थामी थी हमनें
सच को सामने रखना था
हुआ जहाँ कुछ भी गलत
समाज को वो दिखाना था
ना अर्द्ध सत्य पर चलना था
ना रखना था कोई भेद यहाँ
ना बदल सके समाज अगर
तो कलम का अपमान है ये
हर तरफ देखा मैंने
आज हकीकत यही यहाँ
है धर्म हिन्दू सबसे आगे
कर रहे विरोध जिसका
चलो एक सवाल पुछता हूँ
कितना जानते हो इसको
किसने पढ़ी गीता यहाँ
या मनुस्मृति को भी
हाँ बस आंखों के अंधे बन
अपने पैर काट लेना
जो धर्म नहीं बचा अगर
तो अपना शीश काट लेना
जिस धर्म की रक्षा के खातिर
दस गुरूओं ने बलिदान किया
जिस धर्म की रक्षा के खातिर
प्रताप ने सबकुछ त्याग दिया
जिस धर्म की रक्षा के खातिर
शिवा ने खड्ग उठायी थी
क्या भूल गए हो वो सब अब
जिस धर्म के खातिर आखिर
माँ पद्मिनी ने स्व चिता जलायी थी
मत भूलों उन बलिदानों को
जिससे गले में माला है
मत भूलों जिनसे
यज्ञोपवीत हमारा है
हाँ हम हैं हिन्दू सनातनी
जिसने दुनिया में कभी
कोई अत्याचार किया नही
हम क्रुर कभी हुए नहीं
इसलिए सनातन बने रहे
और बदल सको तो अब
बदलो स्वयं के भावों को
गीता,उपनिषद्,पुराण पढ़ो
जानो अपने सनातन को।