STORYMIRROR

Dheeraj kumar shukla darsh

Tragedy Inspirational

4  

Dheeraj kumar shukla darsh

Tragedy Inspirational

आमना- सामना

आमना- सामना

1 min
285

जब कलम थामी थी हमनें

सच को सामने रखना था

हुआ जहाँ कुछ भी गलत

समाज को वो दिखाना था

ना अर्द्ध सत्य पर चलना था

ना रखना था कोई भेद यहाँ

ना बदल सके समाज अगर

तो कलम का अपमान है ये

हर तरफ देखा मैंने

आज हकीकत यही यहाँ

है धर्म हिन्दू सबसे आगे

कर रहे विरोध जिसका

चलो एक सवाल पुछता हूँ

कितना जानते हो इसको

किसने पढ़ी गीता यहाँ

या मनुस्मृति को भी

हाँ बस आंखों के अंधे बन

अपने पैर काट लेना

जो धर्म नहीं बचा अगर

तो अपना शीश काट लेना

जिस धर्म की रक्षा के खातिर

दस गुरूओं ने बलिदान किया

जिस धर्म की रक्षा के खातिर

प्रताप ने सबकुछ त्याग दिया

जिस धर्म की रक्षा के खातिर

शिवा ने खड्ग उठायी थी

क्या भूल गए हो वो सब अब

जिस धर्म के खातिर आखिर

माँ पद्मिनी ने स्व चिता जलायी थी

मत भूलों उन बलिदानों को

जिससे गले में माला है

मत भूलों जिनसे

यज्ञोपवीत हमारा है

हाँ हम हैं हिन्दू सनातनी

जिसने दुनिया में कभी

कोई अत्याचार किया नही

हम क्रुर कभी हुए नहीं

इसलिए सनातन बने रहे

और बदल सको तो अब

बदलो स्वयं के भावों को

गीता,उपनिषद्,पुराण पढ़ो

जानो अपने सनातन को।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy