STORYMIRROR

S.Dayal Singh

Abstract

4  

S.Dayal Singh

Abstract

**आम आदमी**

**आम आदमी**

1 min
107


मैं हूँ आम आदमी,भीड़ बन जाता हूँ,

हर बात पे ताली,अक्सर मैं बजाता हूँ । 

जब भी मुझ पे ख़ास हाथ कोई उठता है,

खुद ही खड़ा तमाशबीन बन जाता हूँ।

बात-बात पर झगड़े पे आ जाता हूँ,

घास हूँ,हर सदी में कुचला जाता हूँ।

मैं रोता हूँ,चिल्लाता हूँ,

कमाता हूँ, खिलाता हूँ,

भर पेट कभी नहीं खाता हूँ,

अक्सर भूखा ही सो जाता हूँ।

मैं मिलता हूँ खेतों में,खलिहानों में,

फैक्ट्रियों में,खदानों में,

मंडियों में, गोदामों में,

जंगलों में,बागानों में।

मैंने हर सदी को

बड़े-बड़े धुरंदर दिए,

शाह दिए,सिकंदर दिए,

मुर्शिद दिये

मुरीद दिए,

दरवेश दिए,कलंदर दिए।

खुद उनकी बातों में आ जाता हूँ,

ताली पे ताली मैं बजाता हूँ,

कुछ ओर नहीं कर पाता हूँ,

बस,ताली पे ताली बजाता हूँ।

भूल गया कल किसने मुझको लूटा था ?

कल किसने मुझको कूटा था ?

एक टूटा हुया तारा हूँ,

कब आसमान से टूटा था ? 

पर जब-कब मैं जागा,नाबर भाग गये,

चंगेज़,अँगरेज़,फिरंगी,जाबर भाग गये,

शाह अब्दाली,गज़नी,तैमूर भागे सब,

तुर्क, पठानी नादिर, बाबर भाग गये।

अब मैं ताली नहीं बजाऊंगा,मैं जाग गया हूँ

भीड़ नहीं बन पाऊंगा, मैं जाग गया हूँ।

-- एस.दयाल सिंह--


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract