आक्रोश
आक्रोश
छुपा देश के भीतर जो था, पता लगा की वो ही ख़ल था।
जैसे मारा है शेरों को, शौर्य नही उनका वो छल था।
सम्मुख आकर हमला करते,तुम्हें दिखाते कैसे लड़ते।
सौ सौ गीदड़ के आगे हम, शेर अकेले भारी पड़ते।
आज देश के हर कोने को लोहे सा फौलाद बना दो।
दुश्मन के सँग उस दुश्मन की वो सारी औलाद मिटा दो।
नक्सल आतंकी लोगों का, साथ वही ज़ालिम देता है।
जिसके मन में देश द्रोह का, ख़ून सदा बहता रहता है।
बदला बदला बदला बदला, बस आवाज़ यही गूंजेगी।
शेरों के क़ातिल चूहों की, आज यहां अर्थी निकलेगी।
