आखिर क्या है गुनाह मेरा?
आखिर क्या है गुनाह मेरा?
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आखिर क्या है गुनाह मेरा
कब तक ,
क्यों झेलूँ ये जिल्लत ,
जिसको मैंने जन्म दिया ,
दुग्ध-पान कराया ,
जीवन दान किया
उसने ही मुझे लूटा ,
खसोटा ,
जैसे जी चाहा बर्बाद किया
एक अकेली जानकर ,
दस मिलकर ,
मेरे शरीर को मुर्दा ,
बना डाला ,अपनी हवस के खतिर ,
टुकड़े-टुकड़े कर डाले ,
मेरे सपनों के संसार को ,
हो गई संतुष्टि ,
यहां भी तुम हार गए ,मैं मर कर भी अमर हो गई तुम ,
जीते जी ही मर गए ।
हर बार सभी से पूछती हूँ क्या है गुनाह मेरा ,
नारी होना या तुम्हारा विक्षिप्त होना ? ।