आखिर कब तक
आखिर कब तक
आज मन कुछ उदास उदास था कुछ तो डर सा था दिल के किसी खोने मे
नहीं पता था दूर कोई अपना मौत से लड़ते लड़ते ये जंग हार जाएगा
बरसो से हम बिछड़े हुए थे महीनों तक कोई खबर नही होती थी
फिर भी उससे मिलने की आस होती थी
कि कभी किसी मोड़ पर मिल जाएंगे एक दूजे से और खुश हो लेंगे
आज वो उमीद भी टूट गयी हर आस भी हमारी टूट गयी आया ये कैसा दौर
हर और महामारी ने हाहाकार है मचाई हुई जाने कितने घर उझड गए इसमे
कौन है इसका जिम्मेदार किसकी है ये गलती कोई तो दे जवाब इसका
घर मे बन्द रहरहकर पागलो सी हो गयी हालात सबकी
आखिर कब तक बंद रहे हम घर के अंदर
घर से बाहर निकलते ही मौत का खौफ़ छा जाता है
कि कहीं न मिल जाये राह में बीमारी
डर डर कर जीने की ये आदत हमको मरने पर है मजबूर कर रही
अपनो को खोने का डर हर पल दिल पर हो रहा है हावी
जाने कितने जाने पहचाने चेहरे हमसे हों रहे जुदा अब तो
और जाने कितने और जुदा होंगे ये डर अंदर ही अंदर जान ले रहा है ।