आख़िर कब तक?
आख़िर कब तक?
मैं पूछती हूँ, शहादत को क्या सिर्फ़ सलामी ही काफी है?
एक के बाद एक होती ऐसी घटनाएँ, क्या इसकी भी कोई माफ़ी है?
अपनी फ़िक्र छोड़ जब देश के लिए शहीद हो जाते है ये जवान
तो क्या आँसू पोछ, उनके परिवार को सिर्फ़ सहायता पहुंचाना ही काफी है?
ईंट का जवाब पत्थर से नहीं , विस्फोटक से देने का आ गया है!
शहादत को सिर्फ सलामी से नहीं, न्याय से कर्ज चुकाने का गया है!
जवानों के रक्त में बहते देशप्रेम को ललकार मत!
ये माटी अब उनकी रक्त की प्यासी है, जिनकी वजह से इसका अपना बेटा इसमें समा गया है।
देश की सलामती के लिए वो तो मर मिट भी जाएगा
पर शहीदों की शहादत पर देश यूं कब तक आँसू बहायेगा?
सवालों के घेरे में खड़ी है आज पूरी इंसानियत
आखिर और कितना बेटा अपनी दोनों माओ से बिछड़ता जाएगा?
कोख में रखा जिस माँ ने, उसका तो रो कर बुरा हाल है
पर देख! पनाह देने वाली माँ का हुआ ना एक भी बांका बाल है
झंझोर कर रख देने वाली हरकत की तुम्हारी होना बहुत बुरा अंजाम है
सब्र को कायरता ना समझ ! वरना समझ लेना ये तेरा आख़िरी साल है।
क्यों छुपा छुप कर हर बार वार होते है?
क्यों चलती है गोलियां जब हमारे जवान सोते है?
अरे करना है तो सामना करो हमारा
देश के शहीदों के लिए यहां अब हम भी रोते है।
क्यों कड़ी निंदा करके आंसुओ को बेदखल करना?
क्यों साझेदारी करके समझौते से समस्या को हल करना?
अब इरादा पक्का है आर या पार करना
देश में गूँज है आतंकवाद का सर्वनाश करना!
