STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

आकाश

आकाश

1 min
101

अनंत तक फैला है

नीला आकाश,

जिसकी विशालता की 

नहीं कोई थाह।

निश्छल, निर्मल ,पवित्र विचार

सबसे रखता सम व्यवहार,

देता जन जन को संदेश

रहो सदा सम बनो श्रेष्ठ,

भेद करो न ,बनो नेक

सबको सदा अपना ही मानों

सबके हित में अपना हित जानों

होकर बड़ा घमंड न करना

सदा सरल बने ही रहना।

नहीं किसी का अनभल सोचो

अपना दिल बड़ा हो रखो,

तभी तुम्हारा मान रहेगा

सबके मन में अपनापन होगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract