आजादी
आजादी
सैंतालीस की चोट हमें है, देती सीख गुलामी की
आपस में लड़वाया हमको, देखी जीत गुलामी की
लगता शायद हम लोगों को, लागी प्रीत गुलामी की
स्वतंत्रता के बाद भी देखो, लगती रीत गुलामी की
आजादी पाने को हमने, जल सा रक्त बहाया था
आजादी की बलिवेदी पर, किसने शीश चढ़ाया था
तिनके तिनके ही चुन चुन कर, हमने नीड़ बनाया था
फाँसी के ही फंदे पर भी, जन गण मन को गाया था
आजादी का भी अब नारा, देता नहीं सुनाई है
खादी से आजादी पाई, कविता खूब सुनाई है
भूल गए तुम कैसे हमने, ये आजादी पाई है
भारत माँ का बलिदान तुझे, देता नहीं दिखाई है
जो इतिहास बताता है वो, मुझे बाच ही लिखना है
कोई कुछ भी कहता हो अब, मुझे साच ही लिखना है
जिससे पत्थर भी टूट गया, वही काँच ही लिखना है
रहे अमर कलम धरम की बस मुझको कब तक दिखना है