आज़ादी
आज़ादी
करता है सुन मन मेरा भी, मैं झूमूँ -नाचूँ-गाऊँ
स्वतंत्रता की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ।
सागर सेवित-हिमगिरि शोभित गरिमा पर इठलाऊँ
परतंत्र नहीं पर न स्वतंत्र हैं, हम सबको य़ाद दिलाऊँ ।
शस्य स्यामला -परम विशाला, भारती शांति दायिनी
स्नेह प्रकाशिनि-दिव्य उज्ज्वला, भारती वैभवशालिनी।
पतित पावन पुण्य पुरातन स्वर्ण संस्कृति सुभाषिनी
कहाँ खो गई स्वर्ण चिरैया की कलरव,अति लुभावनी।
भाव बन्धुता समता करुणा खो सी गई है कहीं
कुंठित मानसिकता बढ़ी निरंतर आज़ादी न रही।
अभिलाषाएँ सर्वहित की नीलम कहीं शेष रहीं नहीं
सक्षम होकर भी मजबूरी की बैसाखी लेनी पड़ रही।
ज्ञानमयी बोध दायिनी वसुंधरा मेरे भारत की
भिन्न धर्म संग बहु भाषा हैं खूबी मेरे भारत की
मात भारती संस्कार दायिनी प्रेरक हम सबकी
वैभव-मनीष बढ़े मेरे देश का महर रहे रब की