आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
एक राह मुज़रिम तंग थी,
दो मुसाफिरों का साथ चलना हुआ,
एक प्यार बेतरतीब यूँ…
कितने शिक़वे और एक मुफ़लिस शुक्रिया,
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
कोशिश रहेगी उम्र भर,
एक नाम पर निकले दुआ,
जिन कमरों में तन्हाई थी,
वहीं यादों से मिलना हुआ,
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
जो वायदा आँखों में हुआ,
वीरानों में अरमानों का मजमा लगा,
पर्दा ना होने का मलाल उन्हें,
जब शफ़ाक ओ शबनम दरमियाँ…
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
ख़ुदग़र्ज़ कब पतझड़ लगा,
सावन कसम देने लगा,
एक ख़्वाब दिल के करीब था,
ख्वाहिशों में जो शहीद हुआ…
तब हिम्मत से हारा करते थे,
अब किस्मत से हारे जुआ..
आज फिर उस दर से लौटना हुआ…
जिसके शगुफ़्ता होने पर जश्न था,
जाने कहाँ वो गुम हुआ,
जिनसे रूह वाबस्ता थी,
किस मोड़ वो तन्हा हुआ?
आज फिर उस दर से लौटना हुआ….