आज फिर जी चाहता है
आज फिर जी चाहता है
कभी बैठो तो फुर्सत में
तुझसे तेरी ही शिकायत करने का
आज फिर जी चाहता है।
मंदिर में बंधी घंटी तेरे संग बजाने का
और बंद आँखों से भी तुझे
सिर्फ तुझे देखने का
आज फिर जी चाहता है।।
तेरी दी पाटिल की सौरभ में खोने का
तेरे पसंदिता लिबाज़ में सजने का
आज फिर जी चाहता है।
तुझे निहारने का
तेरे केश को बुहारने का
आज फिर जी चाहता है।
तेरे एक स्पर्श से बलखाने का
और तुझसे शर्मा के
तेरे ही गले लग जाने का
आज फिर जी चाहता है।।
तेरी कलाई पर गुदगुदाने का
फिर चुपके से तेरी ऊँगली पकड़ने का
आज फिर जी चाहता है।
तुझे दूर खड़े मुस्कुराते देखने का
तेरे बिन छुए भी तुझे
खुद में समां लेने का
आज फिर जी चाहता है।
तेरी परछाई बनकर तेरे संग चलने का
या अंधेरे में तेरे दीपक का लौ बनने का
आज फिर जी चाहता है।
अपना मस्तक तेरे कंधे पे रखने का
तेरा सदैव साथ निभाने का वादा सच करने का
आज फिर जी चाहता है।
तूने बेहद प्यार कर दिया है शायद
इस ऋण को चुकाने का
आज फिर जी चाहता है।