STORYMIRROR

Shikha shivangee

Abstract

5.0  

Shikha shivangee

Abstract

करघा की धुन

करघा की धुन

1 min
537


ये कैसी टक टक की शोर आती है रे सुन

ये तो एक बुनकर की रोज़मर्रा की है धुन। 


उलझी है रंगीन धागों में बूढ़ी अंगुलियाँ

तराश रहीं हैं लिबाज़

जिनमे लिपटी है एक आधुनिक दुनिया।


स्थित करघा में जैसे जपते लगते हैं अटेरन

वृद्ध नीरव देह में फड़फड़ाता है वैसे चंचल मन। 


तो क्यों न आज हम भी खरीदें

उनके बुने कुछ अमूल्य कोष

हो हम भी शुक्रगुज़ार ताकि

पूरे हो उनके हिस्से के ख्वाब इस बार। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract