आज नहीं,मैं कल आऊंगा
आज नहीं,मैं कल आऊंगा
मेरी यह कविता समर्पित है उन सभी डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, गवर्नमेंट ऑफिशल्स, पुलिस प्रशासन और अन्य सभी फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स को, जिनकी पूरी मेहनत और लगन से, मानव सभ्यता को बचाने की जंग जारी है और उनके सभी परिवार वालों को, जिनके समर्थन से, वह यह बायलॉजिकल वार यानी जैविक युद्ध लड़ रहे हैं। सभी कोरोना वारियर्स के परिवार वाले, हर रोज़ जब शाम को उनके लौटने का इंतजार करते हैं तो उनको यह जवाब जब-तब सुनने को मिलता है - आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
मां, तुझे तो सिर्फ मेरी फिकर है,
मुझ पर तो ज़माने भर की नज़र है,
अभी कोविड के बादल छंटे नहीं है,
महामारी के विषाणु सब डटे यहीं हैं,
मां, अभी तो फ़र्ज़ पुकार रहा है,
तेरा बेटा, दूध का क़र्ज़ उतार रहा है,
सभी मांओं को संभाल आऊंगा,
मां, आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
पापा, भोजन दवाई लेते रहना,
एक्सरसाइज में भूल न करना,
आपने हमें, जो भी सिखाया,
उसे निभाने का वक्त है आया,
विपदा ऐसी आन पड़ी है,
मानवता की पुकार बड़ी है,
सभी बड़ों को संभाल आऊंगा,
पापा, आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
प्रिय, तुम अपना ध्यान रखना,
सावधानी में कोई चूक ना करना,
लॉकडाउन क्वारंटाइन से, मन घबराएंगे,
पर इन सब से भी हम निकल जाएंगे,
जब विरह के बादल छंट जाएंगे,
हम प्यार के पंछी फिर गाएंगे,
सभी भाई-बहनों को संभाल आऊंगा,
प्रिय, आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
बेटा, तुम मुझको मिस न करना,
वीडियो कॉल पर एक किस करना,
पापा की बड़ी मजबूरी है,
यहां रहना बहुत ज़रूरी है,
शीघ्र ही सब चिंताएं बीत जाएंगी
खुशियों की भोर चहकती आएंगी,
सभी बच्चों को संभाल आऊंगा,
बेटा, आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
आज नहीं, मैं कल आऊंगा...
धन्यवाद!!