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suvidha gupta

Abstract

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suvidha gupta

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जिंदगी ढूंढती हूं कहीं...

जिंदगी ढूंढती हूं कहीं...

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हरियाली खो गई मेरी 

खाली पेड़ सा साथ लिए घूमती हूं 

मिट्टी खो गई मेरी 

बस ठूंठ सा साथ लिए घूमती हूं


जड़ें थी कहीं मेरी

अपनेपन के एहसास में दबी 

जड़ें खो गई मेरी 

उन जड़ों को ढूंढती हूं कहीं


इस अनजान शहर की भीड़ में 

बिसरे चेहरे ढूंढती हूं कईं 

कुछ अपने छूट गए मझधार में 

बस उन अपनों को ढूंढती हूं कहीं


समय की चलती परिपाटी 

पीछे छोड़ आई यादें कईं 

उन यादों में उलझी 

जिंदगी टटोलती हूं कहीं


हरियाली खो गई मेरी 

जड़ें खो गई मेरी 

मिट्टी खो गई मेरी 

जिंदगी ढूंढती हूं कहीं...

जिंदगी ढूंढती हूं कहीं...



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