आज की औरत
आज की औरत
वो आज की औरत,
जो जीती है
दो अलग जिंदगियां,
घर में अच्छी बहू बनकर
करती है सेवा
अपने सास ससुर की,
अच्छी मां बनकर देती है सीख
अपने बच्चों को भावी जिंदगी की,
अच्छी पत्नी बनकर
निभाती है साथ
पति का हरदम,
चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो,
या हों लाख मुसीबत,
पर जब वो दहलीज घर का
लांघती है,
अपने अस्तित्व,और सम्मान की
खुद ही रक्षा करती है,
बुलंद रखती है
अपनी पहचान को
अजनबियों कि भीड़ में भी,
निभाती है हर फ़र्ज़ को
पूरी मेहनत और लगन से,
कर्तव्य से वो पीछे हट जाए
ऐसा संभव नहीं,
उसके इरादों को कोई तोड़ दे
ऐसा मुमकिन नहीं,
उसने हर रिश्ते को निभाया है
बड़ी सिद्दत से।
वो आज की औरत
जो पहचान चाहती है खुद की,
घर और बाहर के रिश्तों में
खुद का अस्तित्व बनाकर,
पर उसके कुछ अरमान हैं
जिन्हे वो पाना चाहती है,
छूना चाहती है वो
आकाश की बुलंदियों को,
उड़ना चाहती अपने परों पर
ख्वाइशों को अपने
खुद में समेटकर,
वो जिंदगी में अपना
एक अलग ही मुकाम चाहती है।
वो आज की औरत
ना देवी बनना चाहती है,
ना गहनों से सजना चाहती है,
ना वो दूसरों की नजरों में
अबला होना चाहती है,
वो बुलंद इरादों से
आगे बढ़ना चाहती है,
समाज को एक नई दिशा देना चाहती है।
वो आज की औरत
बस खिलना चाहती है
ख़ुशी बनकर अपनों के चेहरों में,
तोड़ना चाहती है
हर उन वर्जनाओं को
जो रोकती है उसे आगे बढ़ने से,
वो सर उठा कर
स्वाभिमान से जीना चाहती है,
पितृ सत्ता के नियमों को
तोड़ना चाहती है,
जिसमे औरतों को बांधा गया है
पारिवारिक खूंटे से,
वो आज की औरत
जो इंसान है,
और इंसान ही होना चाहती है।