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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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आज चाय पर मिले ?

आज चाय पर मिले ?

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मैं जानता हूँ

तुम व्यस्त हो

अपनी दिनचर्या में

बिल्कुल उसी तरह

जिस तरह रात का अंधेरा

व्यस्त रहता है सुबह के इंतज़ार में

कुछ नहीं कहता किसी से

बस ख़ामोश सा रहता है

इस यकीन के साथ

कि उसके इस तन्हा

अकेलेपन को बांटने छांटने

वाला सवेरा जल्द ही उसे

अपने आग़ोश में समेट लेगा

उसका यह यकीन कोई भरम नहीं है

यह और भी पुख़्ता करता है

मेरे उस एहसास को

जो मैं हमेशा तुमसे

मिलने की आकांक्षा लिए

अपने मन में सँजोये

और छुपा कर रखता हूँ

मैं जानता हूँ तुम्हारे

न आने के कारण को

और तुम्हें भी आना नहीं है

फिर भी यह यकीन है

आज नहीं तो कल

कुछ ऐसा हो जाये

जो सब बदल दे

कुछ पल के लिए ही सही

और इस बदलाव की उम्मीद

करना कुछ ग़लत नहीं है

मेरा यकीन तुम्हारी न

और भी मज़बूत बना देती है

और मैं दोगुने उत्साह से

पूछ लेता हूँ तुमसे

आज चाय पर मिले ?......



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