आईना
आईना
आज कई दिन बाद देखा जो आईना
हाँ थोड़ा सा चौक गई मैं
बोला आईना मुझसे, मोहतरमा क्या डर गई
मैंने कहा सूरत देख डरना क्या
जानती हूँ मैं, ये जीवन परिवर्तनशील है
बचपन में कुछ, जवानी में कुछ
और बुढ़ापे में कुछ और होता है
वैसे भी सूरत की मुझे कब परवाह थी
जानती हूँ सीरत की भली हूँ मैं अब भी
अरे ये सफ़ेद बाल मेरे दिखाते हैं तजुर्बा मेरा
जो हर ठोकर खाने के बाद मुझे मिला
और ये झुर्रियाँ दिखाती हैं
ये खंडहर इमारत भी कभी बुलंद थी
डरती नहीं मैं आने वाले कल से
हर समय के लिए डट कर तैयार हूँ
मुस्कुरा कर बोली फिर मैं
अच्छा जी अब चलती हूँ