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Sheel Nigam

Abstract

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Sheel Nigam

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आह

आह

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'दिल बड़ा नाज़ुक होता है।'

सोच कर उसके इर्द-गिर्द बना ली

एक मज़बूत दीवार कठोरता की।

ताले जड़ दिये सभी प्राचीरों के

मुख्य द्वारों पर।


मुनादी करवा दी मन से

'किसी भी संवेग का प्रवेश निषेध'


एहसासों पर चुप्पी,

भावनाओं पर प्रतिबंध,

कामनाओं पर नियंत्रण,

इच्छाओं का दमन,

संवेदनायें खा़मोश।


अँधेरा छाने लगा।

दिल घबरा गया।

नेत्र कातर हो गये।

साँसें घुटने लगीं।

मन मचलने लगा।


संवेदनशील हृदय से

एक 'आह' निकली,

आह ने तोड़ दिये

सारे कठोर बन्धन,

आह को मिले शब्द

और कविता बन गई।


स्वच्छंद, मेरी कविता

बहने लगी हर जगह

सात समुन्दर पार भी

निरंतर बह रही है

उन्मुक्त नदी सी

कहीं कोई ठहराव नहीं।


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